अब क्या बताऊँ दर्द कहाँ था कहाँ न था पूछी वो बात यार ने जिस का गुमाँ न था इस से ज़ियादा हासिल-ए-उम्र-ए-रवाँ न था तेरा निशाँ जो पाया तो अपना निशाँ न था दुनिया हो या हुजूम-ए-क़यामत हो या कि हश्र तेरे ख़राब-ए-इश्क़ का चर्चा कहाँ न था देखी क़फ़स से जा के चमन में जफ़ा-ए-चर्ख़ सब के तो आशियाँ थे मिरा आशियाँ न था आता नज़र था दूर से नज़दीक कारवाँ नज़दीक हम हुए तो कहीं कारवाँ न था आया नज़र न फिर भी जहाँ में किसी को तू हर चंद तेरे जल्वे से ख़ाली जहाँ न था कैसी बहार किस का चमन फ़स्ल-ए-गुल थी क्या दुनिया नज़र में हेच थी जब आशियाँ न था बे-पर्दा इस तरह कभी हासिल था लुत्फ़-ए-दीद हस्ती का भी हिजाब मिरे दरमियाँ न था बिजली पे की नज़र तो फ़लक पर थी जा चुकी देखा जो आशियाँ की तरफ़ आशियाँ न था हर ज़र्रा-ए-जहाँ पे था आबाद इक जहाँ हस्ती का कोई ज़र्रा भी तो राएगाँ न था 'अफ़्क़र' मआल-ए-हस्ती-ए-फ़ानी था बस यही कल तक था नाम आज लहद का निशाँ न था