अन-कहे लफ़्ज़ों में मतलब ढूँढता रहता हूँ मैं क्या कहा था उस ने और क्या सोचता रहता हूँ मैं यूँ ही शायद मिल सके होने न होने का सुराग़ अब मुसलसल ख़ुद के अंदर झाँकता रहता हूँ मैं मौत के काले समुंदर में उभरते डूबते बर्फ़ के तोदे की सूरत डोलता रहता हूँ मैं इन फ़ज़ाओं में उमडती फैलती ख़ुश्बू है वो इन ख़लाओं में रवाँ, बन कर हवा रहता हूँ मैं जिस्म की दो गज़ ज़मीं में दफ़्न कर देता है वो काएनाती हद की सूरत फैलता रहता हूँ मैं दोस्तों से सर्द-मेहरी भी मिरे बस में नहीं और मुरव्वत की तपिश में खौलता रहता हूँ मैं इक धमाके से न फट जाए कहीं मेरा वजूद अपना लावा आप बाहर फेंकता रहता हूँ मैं चैन था 'ख़ालिद' तो घर की चार-दीवारी में था रेस्तुरानों में अबस क्या ढूँढता रहता हूँ मैं