अब क्या करूँगा या-रब तेरा जहान ले कर धरती पे मैं खड़ा हूँ इक आसमान ले कर वा'दों की अंजुमन में कुछ फ़ाएदा नहीं है अपनी ज़बान दे कर मेरी ज़बान ले कर हर शय दिखाई देती है साफ़ जिस की छत से हम लोग बस गए हैं ऐसा मकान ले कर सीने में रह न जाएँ मौसम की दास्तानें पतझड़ को क्या मिलेगा फूलों की जान ले कर राह-ए-वफ़ा में हम को तुम ख़ूब आज़माओ इक इम्तिहान क्या है सौ इम्तिहान ले कर आँचल की लाज रखना होश-ओ-ख़िरद से आगे दीवाने बढ़ रहे हैं तेरा निशान ले कर इस लफ़्ज़-ए-आशिक़ी में लाखों पहेलियाँ हैं तुम क्या करोगे 'दिलकश' ये दास्तान ले कर