अब मैं पयाम-ए-फ़स्ल-ए-बहाराँ को क्या करूँ दामन कहाँ से लाऊँ गरेबाँ को क्या करूँ तासीर-ए-सोज़िश-ए-ग़म-ए-पिन्हाँ को क्या करूँ रंग-ए-परीदा-ए-रुख़-ए-जानाँ को क्या करूँ पैदा यहीं से मेरा नशेमन भी हो तो जाए बे-ए'तिबारी-ए-ग़म-ए-ज़िंदाँ को क्या करूँ तेरी नवाज़िशों ने बिखेरे हज़ार गुल लेकिन मैं अपनी तंगी-ए-दामाँ को क्या करूँ यूँ तो हर एक दर्द ने बख़्शी हयात-ए-नौ मैं फ़ितरत-ए-हयात-ए-गुरेज़ाँ को क्या करूँ तुम क्या मिले कि मिल गईं सारी मसर्रतें अब ये बताओ दीदा-ए-गिर्यां को क्या करूँ 'एहसास' कैसे कैसे हुई थी सहर नसीब फिर आ रही है अब शब-ए-हिज्राँ को क्या करूँ