अब मस्ख़री मत कर छोड़ फ़क़ीर उठ मिरी चादर छोड़ फ़क़ीर नींद निवाला फ़र्श दो-शाला दहलीज़ से बाहर छोड़ फ़क़ीर तू और सिरहाना ढूँड कोई इस क़ब्र का पत्थर छोड़ फ़क़ीर अंदर का जो भी शोशा है अंदर ही अंदर छोड़ फ़क़ीर हैं और भी लंगर दुनिया में इस दरगह का दर छोड़ फ़क़ीर दाब चुका मैं तेरे पाँव अब तो मिरा सर छोड़ फ़क़ीर ये जिस्म का बोरिया तकिया के इक ताक़ के ऊपर छोड़ फ़क़ीर पक्का है गुरु-घंटाल 'शफ़क़' अब उस का चक्कर छोड़ फ़क़ीर