अब मिरा दर्द न तेरा जादू मर्ग-ए-अम्बोह में क्या मैं क्या तू कोई आवाज़ न कोई लर्ज़िश अज़ उफ़ुक़-ता-ब-उफ़ुक़ आलम-ए-हू हल्क़ा-ए-दूद बपा मौज-ए-सबा बुझ गई सीना-ए-गुल में ख़ुश्बू बर्ग-ए-नौ-रस्ता हैं दस्त-ए-मज्ज़ूम ज़हर शाख़ों में बनी मौज-ए-नुमू राख का ढेर हैं वो लोग जो थे गुल-बदन ग़ुंचा-दहन ग़ालिया-मू वक़्त का मय-कदा तस्वीर-ए-सुकूत संग बे-ज़र्ब तब आज़ुर्दा सुबू तय हुआ मरहला-ए-बीम-ओ-रजा नीस्त ही नीस्त है या-हू या-हू