अब मुझे गुलशन से क्या जब ज़ेर-ए-दाम आ ही गया इक नशेमन था सो वो बिजली के काम आ ही गया सुन मआल-ए-सोज़-ए-उल्फ़त जब ये नाम आ ही गया शम्अ आख़िर जल-बुझी परवाना काम आ ही गया तालिब-ए-दीदार का इसरार काम आ ही गया सामने कोई ब-हुस्न-ए-इंतिज़ाम आ ही गया कोशिश-ए-मंज़िल से तो अच्छी रही दीवानगी चलते-फिरते उन से मिलने का मक़ाम आ ही गया राज़-ए-उल्फ़त मरने वाले ने छुपाया तो बहुत दम निकलते वक़्त लब पर उन का नाम आ ही गया कर दिया मशहूर पर्दे में तुझे ज़हमत न दी आज को होना हमारा तेरे काम आ ही गया जब उठा साक़ी तो वाइज़ की न कुछ भी चल सकी मेरी क़िस्मत की तरह गर्दिश में जाम आ ही गया हुस्न को भी इश्क़ की ज़िद रखनी पड़ती है कभी तूर पर मूसा से मिलने का पयाम आ ही गया देर तक बाब-ए-हरम पर रुक के इक मजबूर-ए-इश्क़ सू-ए-बुत-ख़ाना ख़ुदा का ले के नाम आ ही गया रात भर माँगी दुआ उन के न जाने की 'क़मर' सुब्ह का तारा मगर ले कर पयाम आ ही गया