अब न आएगा कभी रूठ के जाने वाला उम्र भर ख़त वही पढ़िएगा सिरहाने वाला वो मरासिम भी निभाता है तो रस्मों की तरह आ गया उस को भी दस्तूर ज़माने वाला ये जुदा होने की रुत है न दिखाओ जी को ज़िक्र छेड़ो न कोई अगले ज़माने वाला मैं ने यादों को कफ़न दे के सुला रक्खा है कौन आएगा यहाँ मिलने मिलाने वाला शिद्दत-ए-ग़म से पिघल जाओगे इक दिन तुम भी सीख लो हम से हुनर हँसने हँसाने वाला ख़ूब उजाड़ा है कई बार दयार-ए-दिल को जा बसा दूर कहीं घर को बसाने वाला अब तो रस्मन भी मुलाक़ात न होगी उस से बस ख़यालों में चला आएगा जाने वाला