अब रहा क्या है जो अब आए हैं आने वाले जान पर खेल चुके जान से जाने वाले ये न समझे थे कि ये दिन भी हैं आने वाले उँगलियाँ हम पे उठाएँगे उठाने वाले कौन समझाए न इठला के सर-ए-रह चलिए हैं ये अंदाज़ गुनहगार बनाने वाले पूछने तक को न आया कोई अल्लाह अल्लाह थक गए पाँव की ज़ंजीर बजाने वाले कहीं रोना न पड़े तुझ को ज़माने के साथ अरे ओ वक़्त की झंकार पर गाने वाले आप अंदाज़-ए-नज़र अपना बदलते ही नहीं और बुरे बनते हैं बेचारे ज़माने वाले पूछती है दर-ओ-दीवार से बीमार की आँख अब कहाँ हैं वो मिरे नाज़ उठाने वाले ब-ख़ुदा भूल गए अपनी मुसीबत 'बिस्मिल' याद जब आए मोहम्मद के घराने वाले