ख़ाकसारों के फ़न करारे हैं ख़ाक ओढ़े हुए शरारे हैं आदमी ये भी वो भी सारे हैं नित नए रंग-रूप धारे हैं क्यों न ख़ुद-बीं हों माह-पारे हैं प्यार करते नहीं जो प्यारे हैं मिट गए जो वफ़ा की राहों में कितने अनमिट निशाँ उभारे हैं किस से शिकवा हो बेवफ़ाई का हम तो अपनी वफ़ा के मारे हैं यास ही यास तुम हमारे हो आस ही आस हम तुम्हारे हैं याद तेरी बड़ा सहारा है तुझ को भूले तो बे-सहारा हैं यूँ बुझे दिल की हसरतें न कुरेद राख के ढेर में शरारे हैं जिन की कोई सहर न शाम कोई हम ने ऐसे भी दिन गुज़ारे हैं कितने गुज़रे हैं हादसे दिल पर वो जो प्यारे थे दिल को प्यारे हैं जान लेवा हैं प्यार के रिश्ते उन पे मरते हैं जिन के मारे हैं ग़म में हँसता ख़ुशी में रोता है तौर 'आमिर' के सब नियारे हैं