अब रहे या न रहे कोई मलाल-ए-दुनिया खींचती है मिरा दिल चश्म-ए-ग़ज़ाल-ए-दुनिया लो उतरती है बदन से मिरे ख़ाकी पोशाक लो हुआ जाता हूँ मैं सर्फ़-ए-कमाल-ए-दुनिया मिट रहे हैं मिरे अंदर के सभी नक़्श-ओ-निगार बन रहे हैं मिरे बाहर ख़द-ओ-ख़ाल-ए-दुनिया तेरे चेहरे का फ़ुसूँ भी नज़र आए तो कहीं कोई आईना दिखाता है जमाल-ए-दुनिया बस यही नख़ल-ए-हवस है जो रहेगा सरसब्ज़ तिरा इक़बाल सिवा ताज़ा निहाल-ए-दुनिया मैं भी हैरान मिरा दिल भी पशीमान सा है जिस्म के हाथ हुआ जब से विसाल-ए-दुनिया