देखते जाते हैं नमनाक हुए जाते हैं क्या गुलिस्ताँ ख़स-ओ-ख़ाशाक हुए जाते हैं एक इक कर के वो ग़म-ख़्वार सितारे मेरे ग़म सर-ए-वुसअ'त-ए-अफ़्लाक हुए जाते हैं ख़ुश नहीं आया ख़िज़ाँ को मिरा उर्यां होना ज़र्द पत्ते मिरी पोशाक हुए जाते हैं देख कर क़र्या-ए-वीराँ में ज़मिस्ताँ का चाँद शाम के साए अलम-नाक हुए जाते हैं ज़ुल्म सब अहल-ए-ज़मीं पर हैं ज़मीं वालों के हम अबस दुश्मन-ए-अफ़्लाक हुए जाते हैं दीदा-ए-तर से मयस्सर था हमें दिल का गुदाज़ क़हत-ए-गिर्या है तो सफ़्फ़ाक हुए जाते हैं कूज़ा-गर ने हमें मिट्टी से किया था तख़्लीक़ क्या तअ'ज्जुब है अगर ख़ाक हुए जाते हैं कैसी इबरत है कि इस कशमकश-ए-रिज़्क में हम अपने ही रिज़्क़ की ख़ूराक हुए जाते हैं