अब सराब के चश्मे मौजज़न नहीं होते ख़ुश्क हो गए शायद तिश्नगी के सब सोते नींद में भी चादर का इतना पास है तुम को कुछ तो पाँव फैलाओ इस तरह नहीं सोते कैसी रात आई है नींद उड़ गई सब की मंज़िलें थपकती हैं क़ाफ़िले नहीं सोते ख़्वाब ख़ुद हक़ीक़त हैं आँख खोल कर देखो किस ने कह दिया तुम से ख़्वाब सच नहीं होते चाक हो गया दामन हाथ हो गए ज़ख़्मी एक दाग़-ए-रुस्वाई और किस तरह धोते गिर्या-ओ-तबस्सुम तो हैं नक़ाब चेहरों के आइने नहीं हँसते आइने नहीं रोते