जो ज़िंदगी बची है उसे ख़ार क्या करें हम भी तुम्हारे होते मगर यार क्या करें हैं बंद सब दुकानें कि बाज़ार-ए-इश्क़ में मिलता नहीं है हम सा ख़रीदार क्या करें लड़ते रहे हवा से जलाते रहे चराग़ अब और रौशनी के तलबगार क्या करें अहबाब चल दिए तिरे दरबार की तरफ़ और हम कि आ गए हैं सर-ए-दार क्या करें सीधी सी बात ये है हमें तुम से प्यार है शे'रों में इस ख़याल की तकरार क्या करें हम जान दे चुके हैं कई बार इश्क़ में अब ये बताओ 'शाद' कि इस बार क्या करें