अब तो ऐसा कोई मंज़र भी दिखाया जाए जिस से रोते हुए बच्चों को हँसाया जाए जुर्म दुनिया में यही सब से बड़ा है ब-ख़ुदा दिल किसी का कभी हरगिज़ न दुखाया जाए एटमी बम के धमाकों में पले बच्चों को कैसे मिट्टी के खिलौनों से लुभाया जाए कितने मासूम हैं भोले से ये रौशन चेहरे इन को रौंदा नहीं पलकों पे बिठाया जाए वक़्त-ए-रुख़्सत ये कहा फूल ने इक बुलबुल से कुछ तो मे'आर-ए-वफ़ा और बढ़ाया जाए अब 'शगुफ़्ता' को जो ता'बीर से डर लगता है उस की आँखों से हर इक ख़्वाब चुराया जाए