डरता हूँ कहीं ऐ दोस्त मिरे ये प्यार मिरा बदनाम न हो जिस तरह से टूटे लाखों दिल अपना भी वही अंजाम न हो ये ज़ालिम दुनिया है साथी कब दो दिल मिलने देती है ऐसी ही तल्ख़ जुदाई की अब अपनी कोई शाम न हो हैं बीच में कितनी दीवारें मज़हब की समाजों रस्मों की इस क़ैद में हम भी दम तोड़ें क़िस्मत में यही इनआ'म न हो उल्फ़त के हाथ थमाया है दुनिया ने ज़हर का पैमाना कितनों ने पिया ये जाम-ए-सम अपने भी लिए ये जाम न हो बदनाम है हर पहचान यहाँ है जुर्म यहाँ हर इक रिश्ता इक रोज़ हमारे सर 'बिस्मिल' ऐसा ही कोई इल्ज़ाम न हो