ऐब तो होंगे चाँद तारे में सोचिए आप अपने बारे में इतना कह दो कि अपने तक रखिए फैल जाएगी बात सारे में और दिलकश हुई हैं नम आँखें मीठी लगती हैं और खारे में अपनी करते हैं दिल ज़मीर-ओ-ज़ेहन सारे अफ़सर हैं इस इदारे में उलझनों से नजात पिन्हाँ है इक भरोसे में इक इशारे में सब परखने को है कमी-बेशी सब उसी का मिरे तुम्हारे में ऐसे फिरते हैं शाम-ए-तन्हा में जैसे हल्की हवा ग़ुबारे में उस की क़ुदरत का मो'तरिफ़ है 'सबा' वो नज़र में वही नज़ारे में