दुखती है रूह पाँव को लाचार देख कर रुक जाएँगे कहीं कोई दीवार देख कर सुबकी न हो कहीं तरफ़-ए-यार देख कर आँखें उठाइए भी तो दस्तार देख कर निकलो जो बन-सँवर के तो बाज़ार देख कर माँगें हैं मोल शक्ल-ए-ख़रीदार देख कर कहना तो बस यही है कि चाहें हैं हम तुझे घबराइयो न बात का बिस्तार देख कर सुसताए है इरादा तसाहुल के रू-ब-रू दुखते हैं पाँव साया-ए-दीवार देख कर अपनों से मुँह छुपाए फिरे है इक आदमी जेबें टटोल के कभी बाज़ार देख कर मारूँ हूँ हाथ-पाँव बहुत 'अश्क' ख़ुद को मैं अपने ही बाज़ुओं में गिरफ़्तार देख कर