अब तो हुजूम-ए-यास की कुछ इंतिहा नहीं या'नी मुझे उमीद का भी आसरा नहीं कब हम से बे-दिलों पे निगाह-ए-जफ़ा नहीं हम ख़ूब जानते हैं कि तू बे-वफ़ा नहीं ऐ रश्क-ए-पर्दा-सोज़ शिकायत की जा नहीं वो बज़्म-ए-नाज़ है दिल-ए-बे-मुद्दआ नहीं दिखलाए फिर ख़ुदा न वो मायूसियों के दिन होता था ये ख़याल कि है या ख़ुदा नहीं अल्लह-रे बे-नियाज़ी-ए-आसूदगान-ए-ख़्वाब इस क़ुर्ब पर किसी से कोई बोलता नहीं आती है ज़र्रे ज़र्रे से आवाज़-ए-बाज़गश्त फिर भी ये कह रहा है अभी कुछ कहा नहीं वो ख़ुद भी दफ़्न हो गई अहल-ए-वफ़ा के साथ बे-कार ढूँढता है जहाँ में वफ़ा नहीं है जल्वा-रेज़ बज़्म-ए-तसव्वुर जमाल-ए-यार ऐ शौक़-ए-दीद अब ये तग़ाफ़ुल रवा नहीं सदक़े तिरे करम के न दे ज़हमत-ए-सवाल कश्कोल है फ़क़ीर का दस्त-ए-दुआ' नहीं महरूमियों से ज़ौक़ है मजबूरियों से इश्क़ मैं कामयाब हूँ ये मिरा मुद्दआ' नहीं वो दीद-हा-ए-शौक़ कि देखें तिरा जमाल किस का बहिश्त कुछ भी उन्हें दीखता नहीं क्यों उस के चूमते ही न मेराज हो नसीब 'बेख़ुद' ख़ुदा का हाथ है दस्त-ए-दुआ' नहीं