दिल ने यूँ हौसला-ए-नाला-ओ-फ़रियाद किया मैं ये समझा शब-ए-ग़म तुम ने कुछ इरशाद किया जब्र-ए-फ़ितरत ने ये अच्छा करम ईजाद किया कि मुझे वुसअत-ए-ज़ंजीर तक आज़ाद किया तुम न थे दिल में तो वीराँ थी कहानी मेरी इश्क़ ने लफ़्ज़ को मफ़्हूम से आबाद किया तेरा अंदाज़-ए-तबस्सुम है कि उन्वान-ए-बहार जब कोई फूल खिला मैं ने तुझे याद किया झिलमिलाने लगी लौ शम्अ' की गुल मुरझाए हम ने जब बज़्म में ज़िक्र-ए-दिल-ए-नाशाद किया इंतिहा-ए-ग़म-ए-फ़ुर्क़त में वो दिन भी आए मैं तुझे भूल गया तू ने मुझे याद किया इम्तियाज़-ए-करम-ٓओ-जौर से महरूम हैं सब तू ने जिस दिल को मिटाया उसे आबाद किया था असीरी में हमें सिर्फ़ गुलिस्ताँ का ख़याल छूट कर आए तो ज़िंदाँ को बहुत याद आया कौन समझेगा मिरा आलम-ए-रिन्दी 'शाहिद' जब कहीं जी न लगा मै-कदा आबाद किया