अब तो मुझ को मान के दुश्मन दोस्त बने हैं जान के दुश्मन गाँव में भी हैं शहरों में भी हर सू हैं इंसान के दुश्मन दुश्मन है जो इंसानों का हम हैं उस हैवान के दुश्मन मेरे भी हैं दुश्मन वो लोग जो हैं हिन्दोस्तान के दुश्मन आप के अपने हैं आली-जाह ग़ैर नहीं सुल्तान के दुश्मन गलियों गलियों ज़ुल्फ़ें खोले फिरते हैं ईमान के दुश्मन बोझ कमाल 'अनवर' हैं घर पर आँगन और दालान के दुश्मन