अब तुम्हारा ग़म मिरे दिल से भुला सकता है कौन जो तुम्हारा है उसे अपना बना सकता है कौन या तो दीवाना हँसे या तुम जिसे तौफ़ीक़ दो वर्ना इस दुनिया में रह कर मुस्कुरा सकता है कौन अब तो दिल घबरा गया है शिद्दत-ए-आलाम से तुम बताओ अब्र-ए-रहमत बन के छा सकता है कौन ज़ीस्त से उम्मीद वाबस्ता है उन के क़ुर्ब की वर्ना इस बार-ए-अमानत को उठा सकता है कौन वाक़िफ़-ए-अंजाम-ए-उल्फ़त थे हम इस के बावजूद वो फ़रेब-ए-दोस्ती खाया है खा सकता है कौन जब करम होता है मिल जाते हैं कोह-ओ-दश्त में दैर-ओ-का'बा में भी वर्ना उन को पा सकता है कौन इश्तियाक़-ए-दीद शायद कर रहा था रहबरी किस तरह हम आए मंज़िल तक बता सकता है कौन हम ने आँखें बंद करके दिल में देखा है तुम्हें सामने आओ तो ताब-ए-दीद ला सकता है कौन मय हो या मस्ती ब-क़द्र-ए-ज़र्फ़ मिलती है 'शिफ़ा' और अपने ज़र्फ़ को उन से छुपा सकता है कौन