अब वफ़ा का सुबूत क्या दूँ मैं सारी दुनिया कहो भुला दूँ मैं मैं ने अपनों से दूर जाना है ज़िंदगी आ तुझे सुला दूँ मैं इक तिरी ज़िद न टूटने पाई वर्ना तो अर्श तक हिला दूँ मैं तुम मुझे मौत की दुआएँ दो ज़िंदगी की तुझे दुआ दूँ मैं तुम जफ़ाओं में क्या करोगे कमी गर वफ़ाएँ ज़रा बढ़ा दूँ मैं बेहतरी तो इसी में है 'शाकिर' दिल से माज़ी को अब मिटा दूँ मैं