अब वो हम से मिला नहीं करते हम भी उन से गिला नहीं करते ग़म-गुसारी बजा है लेकिन दोस्त ज़ख़्म दिल के सिला नहीं करते कब से ख़ामोश है रबाब-ए-हयात तार दिल के हिला नहीं करते चंद ग़ुंचे थे आरज़ुओं के जो अभी तक खिला नहीं करते गरचे मोहसिन न मोहतरम हैं अब हम 'शहीदी' गिला नहीं करते