अब वो ज़ौक़-ए-तसव्वुरात नहीं हाए वो दिन नहीं वो रात नहीं उन की तेग़-ए-अदा पे मर मिटना और कुछ मा'नी-ए-हयात नहीं हाल-ए-दिल पूछते हैं हँस हँस कर बे-सबब तो ये इल्तिफ़ात नहीं फिर है क्या चीज़ काएनात अगर जल्वा-हा-ए-तसव्वुरात नहीं है तसव्वुर में गेसू-ए-शब-गूँ ख़त्म होने की आज रात नहीं ऐसी नासेह कोई किताब भी है हुस्न-ओ-उलफ़त की जिस में बात नहीं