अबस ढूँडा किए हम ना-ख़ुदाओं को सफ़ीनों में वो थे आसूदा-ए-साहिल मिले साहिल-नशीनों में वो औरों के बुतों को तोड़ने वालों को देखो तो छुपाए फिरते हैं अपने बुतों को आस्तीनों में हमारी बेकसी और ना-तवानी का ख़ुदा हाफ़िज़ कि तलवारें हैं पिन्हाँ रहबरों की आस्तीनों में छलक जाती है अश्क-ए-गर्म बन कर मेरी आँखों से ठहरती ही नहीं सहबा-ए-दर्द इन आबगीनों में मिरे अशआर हैं आईना-ए-सोज़-ए-दरूँ 'बज़्मी' झलकता है मिरा ख़ून-ए-जिगर इन आबगीनों में