आँखों में हैं जो ख़्वाब कोई जानता नहीं इस दिल का इज़्तिराब कोई जानता नहीं है अपनी अपनी प्यास का हर एक को ख़याल दरिया भी है सराब कोई जानता नहीं ये जानते हैं लोग कि अंजाम क्या हुआ क्यों आया इंक़लाब कोई जानता नहीं ज़र्रे की रौशनी को समझते हैं सब हक़ीर है वो भी आफ़्ताब कोई जानता नहीं इक हश्र सा बपा है अनासिर के दरमियाँ किस में है कितनी ताब कोई जानता नहीं दा'वा तो अपने इल्म का सब को है ऐ 'ज़िया' क्या चीज़ है किताब कोई जानता नहीं