'अबस इस ज़िंदगी पर ग़ाफ़िलों का फ़ख़्र करना है ये जीना कोई जीना है कि जिस के साथ मरना है जो मुस्तक़बिल के 'आशिक़ हैं उन्हें उलझन मुबारक हो हमें तो सिर्फ़ अब गुज़रा ज़माना याद करना है गुल-ए-पज़मुर्दा से ग़ुंचे को हमदर्दी नहीं मुमकिन अभी तो इस को खिलना है अभी इस को सँवरना है मिरा दिल मुझ से कहता है मिरे सीने में ऐ 'अकबर' त'अज्जुब है कि रहना सहल है मुश्किल ठहरना है ख़ुदा जाने वो क्या समझे कि बिगड़े इस क़दर मुझ पर कहा था मैं ने इतना ही मुझे कुछ ‘अर्ज़ करना है