नज़्अ' की सख़्ती बढ़ी उन को पशेमाँ देख कर मौत मुश्किल हो गई जीने का सामाँ देख कर वो कभी जब इल्तिफ़ात-ए-नाज़ से लेते हैं काम काँप जाता हूँ मैं अपने दिल के अरमाँ देख कर करते हैं अर्बाब-ए-दिल अंदाज़ा-ए-जोश-ए-बहार मेरा दामन देख कर मेरा गरेबाँ देख कर वो न अगला बाग़बाँ है अब न अगले हम-सफ़ीर याद करता हूँ क़फ़स को मैं गुलिस्ताँ देख कर अल्लाह अल्लाह मुझ सा आसी दर्ख़ुर-ए-रहमत हुआ रश्क-ए-ज़ाहिद तो भी है ये क़द्र-ए-इस्याँ देख कर ऐ बुत-ए-काफ़िर मआ'ज़-अल्लाह ये तेरा शबाब कोई काफ़िर ही रहेगा अब मुसलमाँ देख कर इन बुतों ने मुझ को बे-ख़ुद किस क़दर धोके दिए सीधा-सादा जान कर मर्द-ए-मुसलमाँ देख कर