ये ज़मीं मेरी भी है ये आसमाँ मेरा भी है रोज़-ओ-शब के खेल में सूद-ओ-ज़ियाँ मेरा भी है ना-मुरादी के भँवर में एक तू ही तो नहीं साहिल-ए-इम्काँ पे आख़िर इम्तिहाँ मेरा भी है माह-ए-नौ बस एक तू ही तो नहीं तेरे सिवा क़र्या-ए-शब में चराग़-ए-जाँ-फ़िशाँ मेरा भी है गूँज उट्ठी है ज़मीं-ता-आसमाँ इमरोज़-ओ-शब इस सदा-ए-हू में इक हर्फ़-ए-फ़ुग़ाँ मेरा भी है