अभी अभी थी लबों पर हँसी अभी न रही बनी थी बात मुक़द्दर से जो बनी न रही बहार आई गुलिस्ताँ में दिलकशी न रही निखार फूलों में कलियों में ताज़गी न रही कुदूरतों को मिटाओ ख़ुलूस-ए-दिल से मिलो भरोसा ज़ीस्त का क्या है रही रही न रही उमीद-ओ-यास के घर में रहा क़याम अपना चले सफ़र पे तो उम्मीद-ए-वापसी न रही उठा के आईना देखो ज़रा जमाल अपना तुम्हारे हुस्न में पहली सी दिलकशी न रही नज़र मिलाई जो उन से तो ऐ 'नियाज़' लगा मिज़ाज-ए-यार में पहली सी बरहमी न रही