अहल-ए-वफ़ा वफ़ा का समर माँगते नहीं दिल माँगते हैं लाल-ओ-गुहर माँगते नहीं अपना वक़ार अपनी ख़ुदी जिन को है अज़ीज़ वो हर किसी से लुत्फ़-ओ-नज़र माँगते नहीं अपने जमाल-ए-नूर का कुछ अक्स दीजिए हम आप से तो शम्स-ओ-क़मर माँगते नहीं करते हैं बिल-मुशाफ़ा सितारों से गुफ़्तुगू किरनों की भीक अहल-ए-नज़र माँगते नहीं उन का ख़ुलूस चाहिए उन की निगाह-ए-लुत्फ़ 'आतिश' किसी से दौलत-ओ-ज़र माँगते नहीं