अभी और तेज़ कर ले सर-ए-ख़ंजर-ए-अदा को मिरे ख़ूँ की है ज़रूरत तिरी शोख़ी-ए-हिना को तुझे किस नज़र से देखे ये निगाह-ए-दर्द-आगीं जो दुआएँ दे रही है तिरी चश्म-ए-बेवफ़ा को कहीं रह गई हो शायद तिरे दिल की धड़कनों में कभी सुन सके तो सुन ले मिरी ख़ूँ-शुदा नवा को कोई बोलता नहीं है मैं पुकारता रहा हूँ कभी बुत-कदे में बुत को कभी का'बे में ख़ुदा को