अभी चमन है क़फ़स तो अभी क़फ़स है चमन नज़ारा-ए-चमन-ए-रोज़गार करता जा चला है बादिया-ए-जुस्तुजू को तय करने शुगून-ए-गिर्या-ए-बे-इख़्तियार करता जा नक़ाब-ए-आरिज़-ए-रंगीं हटा के ऐ दिलबर जहाँ के बन को हमेशा बहार करता जा ग़श आ गया है तमाशाइयों को जल्वे से सदा सुना के उन्हें होशियार करता जा तजल्लियों के लिए कोई वक़्त ख़ास नहीं किया है और यूहीं इंतिज़ार करता जा शिकंजा नज़्अ' का जिस दम हटा सदा आई कि जिस्म-ए-ज़ार को नज़्र-ए-फ़िशार करता जा यूहीं बला से क़यामत का दिन गुज़र जाए गुनाह अपने बताऊँ शुमार करता जा समझने पाए कभी आसमाँ न ऐ 'बेख़ुद' ये जितना जब्र करे इंकिसार करता जा