ऐ रश्क-ए-पर्दा-सोज़ शिकायत की जा नहीं वो बज़्म-ए-नाज़ है दिल-ए-बे-मुद्दआ नहीं 'बेख़ुद' ख़याल-ए-यार में बू-ए-वफ़ा नहीं गोया कि ये कभी मिरे दिल में रहा नहीं सय्याद क़ैद कर के मुझे देख ले ज़रा दिल ख़ूँ न हो तो बुलबुल-ए-ख़ूनीं-नवा नहीं अल्लह री बे-नियाज़ी-ए-आसूदगान-ए-ख़ाक इस क़ुर्ब पर किसी से कोई बोलता नहीं नैरंगी-ए-ख़याल से धोका है ग़ैर का कहती है शान-ए-हुस्न कोई दूसरा नहीं आती है ज़र्रे ज़र्रे से आवाज़-ए-बाज़गश्त फिर भी ये कह रहा है अभी कुछ कहा नहीं शीराज़ा-बंद-ए-दर्द-ए-तसलसुल है ज़ुल्फ़-ए-यार आग़ाज़-ए-मुद्दआ' की कोई इंतिहा नहीं है जल्वा-रेज़-ए-बज़्म-ए-तसव्वुर जमाल-ए-यार ऐ चश्म-ए-शौक़ अब ये तग़ाफ़ुल रवा नहीं चिंगारियाँ सी उड़ने लगी हैं निगाह में क्यों सोज़-गर ये तेरी कहीं इंतिहा नहीं महरूमियों से ज़ौक़ है नाकामियों से इश्क़ मैं कामयाब हूँ ये मिरा मुद्दआ' नहीं जाती है कू-ए-मजमा-ए-महशर पे याँ नज़र वो पर्दा-ए-हुजूम-ए-तमन्ना उठा नहीं यूँ इंतिहा-ए-ज़ोफ़ में है शिकवा-ए-जफ़ा गोया ये दिल कभी का सितम-आश्ना नहीं 'बेख़ुद' है बे-नियाज़ कोई ये भी सुन लिया शर्मिंदा-ए-क़ुबूल हमारी दुआ नहीं