अभी न कीजिए ज़हमत नक़ाब उठाने की नज़र में ताब नहीं है नज़र मिलाने की हमारे हाथ में बस इक तुम्हारा दामन है तुम्हारे हाथ में तक़दीर है ज़माने की हमारे पहले तुम्हें कौन सर झुकाता था हमीं ने रस्म निकाली है सर झुकाने की हुजूम-ए-बर्क़ भी आ कर क़रीब लौट गई कमाल कर गई तक़दीर आशियाने की चमन में अपने नशेमन की ज़िंदगी कितनी रखी है बर्क़ पे बुनियाद आशियाने की निगाह-ए-नाज़ वहाँ आसरा दिया तू ने जहाँ उमीद थी कश्ती के डूब जाने की चमक ही जाओगे दुनिया में एक दिन 'नय्यर' ग़ुलामी करते रहो उन के आस्ताने की