अभी तक जब हमें जीना न आया भरोसा क्या कि कल आया न आया जले हम यूँ कि जैसे चोब-ए-नम हों चराग़ों की तरह जलना न आया ग़ुलेलें ला के बच्चे पूछते हैं परिंदा क्यूँ वो दोबारा न आया मैं क्या कहता कि सब के साथ में था अयादत को भी वो तन्हा न आया इहाता चहार-दीवारी अंधेरा किसी जानिब भी दरवाज़ा न आया वो पहले की तरह बिछड़ा है अब भी मगर अब के हमें रोना न आया ख़ज़ाना ले उड़ा चोरों का जत्था पलट कर फिर अली-बाबा न आया