मुझे मा'लूम है मैं आज क्या हूँ ख़ुदा हूँ पर अभी सोया हुआ हूँ सर-ए-महफ़िल मैं यूँ ख़ामोश रह कर सभी लोगों के तेवर देखता हूँ मिरा मज़हब फ़क़त इंसानियत है जिसे हर-हाल में मैं पूजता हूँ नहीं उस रास्ते का कोई रहबर कि जिस रस्ते पे अब मैं चल पड़ा हूँ मुझे सब देख कर हैरान क्यूँ हैं मैं क़ातिल हूँ कोई या देवता हूँ बुरा कहने से पहले सोच लेना मैं जैसा भी हूँ लेकिन आप का हूँ मुझे तुम मेरे अंदर ढूँढते हो पर इक अर्से से मैं तो लापता हूँ