ख़्वाब आँखों में जितने पाले थे By Ghazal << मुझे मा'लूम है मैं आज... एक ख़्वाहिश है बस ज़माने ... >> ख़्वाब आँखों में जितने पाले थे टूट कर वो बिखरने वाले थे जिन को हम ने था पाक-दिल समझा उन ही लोगों के कर्म काले थे सब ने भर-पेट खा लिया खाना माँ की थाली में कुछ निवाले थे हाल दिल का सुना नहीं पाए मुँह पे मजबूरियों के ताले थे Share on: