अब्र बरसा है न जाने किस लिए फूल महका है न जाने किस लिए रह-रवान-ए-शौक़ रुख़्सत हो गए चाँद निकला है न जाने किस लिए जब तुम्हारी आरज़ू बाक़ी नहीं दिल धड़कता है न जाने किस लिए इस क़दर शिद्दत नहीं थी तंज़ में घाव गहरा है न जाने किस लिए क्या कहें कैफ़िय्यत-ए-'तनवीर' हम शेर कहता है न जाने किस लिए