कौन ले गया दिल से सोज़-ओ-साज़-ए-रानाई सुब्ह से झलकती है आज शाम-ए-तन्हाई दहर की फ़ज़ाओं में कौन रक़्स करता है कौन कर रहा है यूँ आप अपनी रुस्वाई एक इक नफ़स में था कैफ़-ओ-वज्द का आलम दिल कि भूल बैठा अब ज़ौक़-ए-नग़्मा-पैराई दार-ओ-गीर-ए-दुनिया को ऐ 'कलीम' क्या कहने बस कि इस ज़माने में ख़ामुशी है गोयाई