अब्र ही अब्र है बरसता नईं अब के सावन तुम्हारे जैसा नईं ख़्वाब और सैंत कर रखें आँखें इन से आँसू तो इक सँभलता नईं घूमती है ज़मीन गिर्द मिरे पाँव उठते हैं रक़्स होता नईं नोच डाले हैं अपने पर मैं ने मैं भी इंसान हूँ फ़रिश्ता नईं कैसा हरजाई हो गया आँसू मेरा दामन है और गीला नईं कब हुए दोस्त कब हुए दुश्मन आप का भी कोई भरोसा नईं दिल की बातें और इस से छोड़ो भी वो जो लगता है यार वैसा नईं बातों बातों में जान लेंगे सभी जो भी तेरा नहीं वो मेरा नईं आसमानों में खो गईं जा कर कुछ पतंगों की कोई 'सीमा' नईं