आग पानी भी है मिट्टी है हवा है मुझ में मेरे ख़ालिक़ का कोई राज़ छुपा है मुझ में हो न जाए तह-ओ-बाला कहीं दुनिया सारी एक तूफ़ान-ए-बला-ख़ेज़ बपा है मुझ में रोक लेती हूँ क़दम ख़ुद ही ग़लत राहों से ऐसा लगता है कोई मुझ से बड़ा है मुझ में एक मुद्दत से वो ख़ामोश है 'सीमा' लेकिन एक मुद्दत से वही चीख़ रहा है मुझ में