अब्र का माहताब का भी था इक ज़माना शराब का भी था कुछ तबीअ'त भी अपनी माइल थी कुछ झमेला शबाब का भी था रात-भर तेरी चाँदनी और दिन याद के आफ़्ताब का भी था तेरी शोहरत के ख़ास रंगों में इक मिरे इंतिख़ाब का भी था चाँदनी में तिरे बदन का निखार हुस्न कुछ माहताब का भी था मौसम-ए-वस्ल तेरी ज़ुल्फ़ों में आस्ताना गुलाब का भी था कुछ मिरे शौक़ की तजल्ली थी कुछ सरकना नक़ाब का भी था तुंद लहरों से क्या शिकायत हो जिस्म नाज़ुक हबाब का भी था उम्र ज़िंदान-ए-जब्र में गुज़री और अभी दिन हिसाब का भी था कुछ तिरा इंतिज़ार था और कुछ मय-ए-गुल रंग-ओ-नाब का भी था ये सज़ा-ओ-जज़ा की बात न थी डर सवाल-ओ-जवाब का भी था तुम अगर ढूँडते तह-ए-दिल तक रास्ता इंक़लाब का भी था जिस में तुम बस गए कभी वो घर दिल-ए-ख़ाना-ख़राब का भी था हम तो ठहरे कशीदा-सर लेकिन हुक्म-ए-हाकिम इ'ताब का भी था वक़्त के चोर-आइने में 'मुनीर' अक्स चश्म-ए-पुर-आब का भी था