अब्र के साथ हवा रक़्स में है सारे जंगल की फ़ज़ा रक़्स में है पाँव टिकते ही नहीं अश्कों के जैसे आँखों की दुआ रक़्स में है दरमियाँ चीख़ते इंसानों के मेरा ख़ामोश ख़ुदा रक़्स में है खोखला पेड़ खड़ा है लेकिन उस का एहसास अना रक़्स में है अब तो उन पैरों को ग़ैरत आए वो मिरा शो'ला-नवा रक़्स में है इश्क़-ए-पेचाँ जो सुतूनों पे चढ़ी घर की वीरान फ़ज़ा रक़्स में है ख़ुशबुएँ गूँज रही हैं मुझ में आज फूलों की सदा रक़्स में है सब लकीरों से लहू रिसता है यूँ हथेली पे हिना रक़्स में है नज़र-ए-सैलाब हुए अहल-ए-मकाँ ताक़ पर अब भी दिया रक़्स में है