अब्र की ओट से छलका है उधर धूप का रंग है सुकूँ-बख़्श बहुत वक़्त-ए-सहर धूप का रंग वादियाँ झीलें हों पर्बत हों कि हों दश्त-ओ-दमन कितने लगते हैं हसीं चमके अगर धूप का रंग अंजुमन शब की उठी नूर-ए-सहर आते ही ओढ़ने लग गए गुलशन में शजर धूप का रंग शब की तारीकी में सोए थे जो थक कर ताइर ताज़ा-दम हो गए जब आया नज़र धूप का रंग वक़्त ज़िंदाँ के अँधेरों में गुज़ारा जिस ने उस के हुजरे में करे काश गुज़र धूप का रंग 'नाज़ली' पहन लिया धरती ने ज़र-दोज़ लिबास जब उफ़ुक़ से हुआ फ़िरदौस-ए-नज़र धूप का रंग