अब्र-ए-दीदा का मिरे हो जो न ओझढ़ पानी फिर कहीं झिड़की लगाए न कहीं झड़ पानी मेरे रोने से दिल-ए-संग जो आब आब न हो कोहसारों से गिरे फिर न धड़ा-धड़ पानी ये अंधेरा ये शब-ए-तार कहाँ जाओगे दिन हैं बरसात के गलियों में है कीचड़ पानी बर्क़-अंदाज़ न किस तरह करूँ नाला-ए-गर्म जान बेताब है बिजली की तरह तड़ पानी रश्क-ए-ला'ल-ए-लब-ए-लालीं से जिगर-ख़ूँ याक़ूत शर्म-ए-दंदाँ से है मोती की हर इक लड़ पानी तीर-बाराँ मिज़ा-ए-यार मुझे करती है मैं समझता हूँ बरसता है झड़ा-झड़ पानी मैं जो ऐ 'शाद' न रोऊँ सिफ़त अब्र-ए-बहार पाएँ इक क़तरा कहीं झील न झाबड़ पानी