अहल-ए-ईमाँ से न काफ़िर से कहो ऐ बुतो लेकिन ख़ुदा-लगती कहो गर मिलें यारान-ए-रफ़्ता पूछिए मर गए पर किस तरह गुज़री कहो पाइमालो इश्क़ में क्यूँकर कटी कोहकन से सरगुज़श्ते अपनी कहो चश्म-ए-तर पर दज्ला-ओ-जीहूँ में क्या अब्र सी छा जाए जो फबती कहो शम-ओ-परवाना जो पूछें सोज़-ए-इश्क़ अपनी बीती या मिरी बीती कहो पीट पीछे बद कहो ऐ आइनो रू-ब-रू उस के न मुँह-देखी कहो मुँह लपेटे गोशा-ए-मरक़द में 'शाद' क्यूँ पड़े चुप हो है कैसा जी कहो