अदब से आरी दरिंदा-सिफ़ात लोगों में मैं बैठता ही नहीं वाहियात लोगों में नहीं तवील मिरे आश्नाओं की फ़िहरिस्त मैं जाना जाता हूँ बस पाँच सात लोगों में ख़ुदा का शुक्र सुख़न राएगाँ नहीं मेरा सुनी गई है मिरी बात बात लोगों में मुझे भी छोड़ के जाना है एक रोज़ जहाँ मिरा शुमार भी है बे-सबात लोगों में मुझे ख़ुदा पे मुकम्मल यक़ीन है मिरे दोस्त मैं ढूँढता नहीं राह-ए-नजात लोगों में ये इश्क़ मैं ने छुपा कर किया था सो इस की बयान कैसे करूँ मुश्किलात लोगों में ये क्या बना हूँ मोहब्बत का मैं शजर साहिब बिखर गया है मिरा पात पात लोगों में