जलने दो नशेमन को जलता है तो जल जाए भड़के हुए शो'लों का अरमाँ तो निकल जाए दीवानों का क्या मस्लक दीवाने तो दीवाने जो दिल में समा जाए जो मुँह से निकल जाए लब तक तो न आएगा राज़-ए-ग़म-ए-दिल लेकिन मुमकिन है ये अफ़्साना पलकों से मचल जाए उस ज़ौक़-ए-तजस्सुस की अज़्मत को ख़ुदा जाने जो हद्द-ए-तअ'य्युन से कुछ आगे निकल जाए ऐ अहल-ए-चमन हम तो इस ज़ह्न के हामिल हैं फूलों को जो ठुकरा दे काँटों से बहल जाए कुछ रंग तो भरने दो तस्वीर-ए-मोहब्बत में ये मेरा मुक़द्दर है बिगड़े कि सँभल जाए तुम मेरे नशेमन के जलने पे तो हँसते हो लेकिन जो कोई शो'ला रुख़ अपना बदल जाए फ़रियाद की लय में भी 'हैरत' कोई नुदरत हो इस तरह कि हर नाला नग़्मात में ढल जाए